कुंभ एवं अर्क विवाह - जाने क्यों और कैसे
यदि लड़के अथवा लड़की की कुंडली में सप्तम भाव अथवा बारहवां भाव क्रूर ग्रहों से पीड़ित हो अथवा शुक्र, सूर्य, सप्तमेष अथवा द्वादशेष, शनि से आक्रांत हों। अथवा मंगलदोष हो अर्थात वर-कन्या की कुंडली में १,२,४,७,८,१२ इन भावों में मंगल हो तो यह वैवाहिक विलंब, बाधा एवं वैवाहिक सुखों में कमी करने वाला योग होता है। धर्म सिंधु ग्रंथ में तत्संबंध में अर्क-विवाह (लड़के के लिए) एवं कुंभ विवाह (लड़की के लिए) कराना चाहिए। कुंभ विवाह जब चंद्र-तारा अनुकूल हों, तब तथा अर्क विवाह शनिवार, रविवार अथवा हस्त नक्षत्र में कराना ऐसा शास्त्रमति है। मान्यता है कि किसी भी जातक (वर) की कुंडली में इस तरह के दोष हों, तो सूर्य कन्या अर्क वृक्ष से व्याह करना, अर्क विवाह कहलाता है। कहते हैं इस प्रक्रिया से दाम्पत्य सुखों में वृद्धि होती है और वैवाहिक विलंब दूर होता है। इच्छित विवाह याने लव मेरिज करने में भी सफलता मिलती है। इसी तरह किसी कन्या के जन्मांग इस तरह के दोष होने पर भगवान विष्णु के साथ व्याह कराया जाता है। इसलिए कुंभ विवाह क्योंकि कलश में विष्णु होते हैं। अश्वत्थ विवाह (पीपल पेड़ से विवाह)- गीता में लिखा श्वृक्षानाम् साक्षात अश्वत्थोहम् ्य अर्थात वृक्षों में मैं पीपल का पेड़ हूं। विष्णुप्रतिमा विवाह- ये भगवान विष्णु की स्वर्ण प्रतिमा होती है, जिसका अग्नी उत्तारण कर प्रतिष्ठा पश्चात वैवाहिक प्रक्रिया संकल्प सहित पूरी करना, ऐसा शास्त्रमति है।
कुंभ विवाह / अर्क विवाह भारत में किए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। कुंभ विवाह उन महिलाओं के लिए किया जाता है जिनकी कुंडली में मांगलिक दोष या दूसरा विवाह का योग होता है । अर्क विवाह उन जातक (वर) के लिए किया जाता है जिनकी कुंडली में मांगलिक दोष का योग होता है। सूर्य कन्या अर्क वृक्ष से विवाह करना, अर्क विवाह कहलाता है। अर्क विवाह से दाम्पत्य सुखों में वृद्धि होती है और वैवाहिक विलंब दूर होता है।
कन्या का विवाह कुम्भ (मिट्टी के घड़े) से किया जाता है। भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, पॉट को लड़की का पहला पति माना जाता है। क्योंकि, यह एक निर्जीव वस्तु है, यह अमान्य और शून्य हो जाती है। इसलिए मानव से शादी उसकी पहली शादी मानी जाती है। कुंभ लड़की के सभी दोषों को अपने ऊपर ले लेता है और मंगल कुंभ विवाह के उपरांत लड़की के पति को प्रभावित नहीं करता। वह अब असली व्यक्ति से शादी कर सकती है और शादी के बाद उसे और कोई समस्या नहीं होगी। उनके पति अब उनके मंगल दोष से सुरक्षित हैं।
कुंभ विवाह के दौरान, लड़की शादी की पोशाक और गहने पहन सकती है। माता-पिता कन्या का कुंभ से "कन्या दान" और "फेरे" करते हैं। पूजा के दौरान पंडित मंत्र का पाठ करते हैं। इस अनुष्ठान के बाद लड़की को मांगलिक दोष से बाहर माना जाता है।